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________________ Acharya Shri Ka y amandi दश मता धिकारे ॥१॥त्रण तत्व स्वरुप छे, आत्म तत्व धरेय; देव तत्व गुरु तत्वहें, धर्म तत्व जो लेय ॥ २॥ तास , वर्धमान परिक्षा कारणे, शुद्धा शुद्ध स्वरुप; कहेशुं ते भवि सांभलो, भाख्यो त्रिभुवन भूप ॥३॥ स्तवनम् ___ ढाल-१-प्रथम-जिहो प्रणमु दिनप्रति जिनपति लाला, शिवसुख कारि अशेष ॥ ए देशी जिहो चरम जिणेश्वर शिव गयारे लाला, वर्ष एकविस हजार; जिहो शासन श्री वर्धमाननो लाला, रहेशे जंबु भरत मोझार ॥ भविक जन ओलखो धर्म श्वरुप ॥जेहथी माने सुरनर भूप॥भविक जन ओलखो धर्म श्वरुप ॥ ए आंकणी ॥ १॥ जिहो अनुयोग द्वारमांहि कह्योरे लाला, आगम त्रण प्रकार; जिहो संप्रति सम परंपरारे लाला, माने नहि ते गमार ॥ भविक०॥ जेहथी० ॥२॥ जिहो वीरथी सुरि परंपरारे लाला, दुपसह लगण निरधार; जिहो वर्तवे मारग विरनोरे लाला, उपदेश माला अधिकार ॥ भविक०॥ जेहथी०॥३॥ जिहो जिहां तीर्थंकर विना नवी होवेरे लाला, तीर्थ | तणो उद्धार; जिहो सुरि विना शोभे नहिरे लाला, गच्छ तणो वीचार ॥ भविक० ॥ जेहथी०॥४॥ जिहो महानिसिथे भाखियारे लाला, सुरिना पंच प्रकार; जिहो पडते काले एवा होशेरे लाला, For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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