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________________ . Kailag Gyamandie दशमता धिकारे वर्धमान स्तवनम् ॥१३७॥ शुद्ध निमित्त छे प्रभु ताहरूं, तो ते आवे लेखेरे; जो लगन थइ तुझ नाममां, तो निज श्वरुपने देखेरे। सुण सुण ॥ ९४॥ कष्ट करे क्रिया करे, विविध करुं व्यवहाररे; ज्ञानदिशा विण जीवने, नहिं दुख छेह लगाररे ॥ सुण सुण०॥ ९५॥ अचिरा नंदन तुं जयो, विश्वसेन कुल राय दिणंदरे; मारि'नीवारी देशथी, तुझ जन्मे जिणंदरे ॥ सुण सुण ॥९६॥ चक्रवर्ती थयो पांचमो, वेली सोलमो जिनवर होयरे; एकण भवे दोय पदवी लही, तुझ समो अवर नही कोयरे॥सुण सुण ॥ ९७ ॥ श्री विधिपक्ष गच्छे दीपता, श्री कीर्तिरत्नसूरि सोहेरे; तस शीश शिवरत्न कहे, तुंझ आधार छे जगदीशो रे॥सुण सुण०॥९८॥ ॥ इति श्री चतुदेश गुणस्थानक गाभत शांतिनाथ स्तवनम् ॥ ॥१३७॥ “अथ श्री दस मताधिकारें वर्धमान जिन स्तवन" ___ दुहा-सुखदाई चोविसमो, प्रणमि तेहना पाय; गुरुपद पंकज चित धरि, श्रुत देवी सारदाय १ मरकी.२ सौभाग्यरत्न । For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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