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________________ SM Mahavam A kende charya Shm KailassagarsuriSyanmandir चतुश्री स्थान ॥१३५॥ थाय ॥६६॥ निद्रा प्रचला देवगति आयु, जाति पंचेंद्रिय शुभ विहाउ; त्रस बादर प्रत्येक पर्याप्त || शांति भेय, स्थिर शुभ सौभाग्य शुखर आदेय ॥ ६७ ॥ तैजस कार्मण वैक्रिय आहारक, वली एहनां अंगो | नाथ पांग निरधार; पहेलु समचउरस संठाण, वर्ण गंध रस फर्ष वखाण ॥ ६८॥ पराघात अगुरुलघुः स्तवनम् उपघात, उसास निर्माण जिन नाम विख्यात; ए बत्रीश काढतां छवीस बंधाय, उदय प्रकृत्ति || बहुंतेर कहेवाय ॥ ६९ ॥ कहुं हवे अनिवृत्ति बादर गुणठांण, जिहां अधिक भाव स्थिरता अहिनाण; पूर्व भाव चलाचल जेह, सहेजे अडोल थया सर्व तेह ॥ ७॥ हास्य रति भय डुगंच्छा विण एहै, बांधे बावीस प्रकृति वली जेह; उदय प्रकृति छासहि निरधार, कहुं ए नवमा गुणठाण विचार ॥ ७१ ॥ हवे दसमुं गुणठाणुं सुणो, सुक्ष्म लोभ उदय जिहां सुणो; तिहां सर्वे अभिलाष8 सूक्ष्म होय, सूक्ष्मसंपराय कहीए सोय ॥ ७२ ॥ पुरुषवेद च्यार संज्वलन कषाय, ए काढतां प्रकृति ॥१३५॥ सत्तर बंधाय; उदय प्रकृति साठ एहनी कही, ए विच्यार दसमे गुणठाणे सही ॥७३॥ इग्यारमुं ******CARRERA १ चउ, छेह । For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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