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श्रीचतुदश गुणस्थान
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वाय ॥ संयम० ॥ ५८ ॥ पांच समिति त्रिहुं गुप्तिशुं, पाले पंचाचार; बावीस परिसह जीपवा, वहि पंच महाव्रत भार ॥ संयम ॥ ५९ ॥ थिविर कल्पी कांइ सरागता, जिनकल्पी निर हंकार; आरति रौद्र निवारवा, धरे धर्म विचार ॥ संयम० ॥ ६० ॥ च्यार प्रत्याख्यानी काढतां बंधे त्रेसठ होय; उदय एकाशीनुं कयुं, इम छट्ठे गुणठाणे जोय ॥ संयम० ॥ ६१ ॥ जिहां प्रमाद नही जीवने, ते कहे सत्तम गुणठाण; तिहां आतम तत्व अनुभवि, धरि निरालंबन ध्यान ॥ संयम० ॥६२॥ शोक अरति अशुभ अथिरता, अशाता वेदनीय अजस; ए छ प्रकृति काढतां, रही सत्तावन अवश्य ॥ संयम० | ॥ ६३ ॥ आहारक सरीर भेलीए, वली एहनां अंगोपांग; आयु बांध्युं न होय जो देवनुं, तो अडवन बांधे मनरंग ॥ संयम० ॥ ६४ ॥ ए ऋण प्रकृति मांहे भेलतां, बंध उगणसाठ होय; उदय छहुंतेरनुं सहि, इम सत्तम गुणठाणें जोय ॥ संयम ॥ ६५ ॥
ढाल – ७ – मी ॥ चोपाई ॥ अशोसुदि सातम सुविचार ॥ ए देशी ॥ हवे कहुं अट्ठम गुणठांण, नांम अपूर्व करण वखाण; जिहां क्षपक उपशम श्रेणी मंडाय, तिहां जीव प्रणाम अति निर्मल
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शांति
नाथ
स्तवनम्