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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobateh.org. Achan Kailas a mendi नाथ श्रीचतु- र्याप्त साधारण सहि रे, हुंडक आतप मिथ्यात ॥ जुओ जुओ ॥ २५ ॥ सेवा” संघयण नपुंसक वेद । शांतिर्दश गुण-जाणी ए रे, ए सोल न बांधे निरधार; एकसो एक प्रकृति बांधे सही रे, उदय होय एकसो अग्यार में स्थान । जूओ जूओ ॥ २६ ॥ त्रीजुं गुणठाणुं अंतर्मुहर्तनुं सही रे, जिहां हरिहर जिनदेव समान; राग स्तवनम् ॥१३२॥ द्वेष नही जिनधर्म मिथ्यात्वशुं रे, सर्व वर्ते एक तान ॥ जूओ जूओ ॥ २७ ॥ तिरियंच गति आयु आनुपूर्वी एहनी रे, डुर्भाग्य डुःश्वर अनादेय; निद्रा निद्रा प्रचला प्रचला थीणद्वि कही रे, कषाय अनुत्तानुबंधी जोय ॥ जूओ जूओ॥ २८ ॥ संघयण ऋषभनाराच नारच जाणी ए रे, अर्धना राच कीलिका ए चार; संस्थान निग्रोध सादि वामन वली जाणीए रे, कुब्ज नीच गोत्र विचार ॥ ओ जूओ ॥ २९ ॥ आयु देव मनुष्य माहि भेलीये रे, ऊखगइ स्त्रीवेद उद्योत; ए सतावीश न बांधे बांधे चिहुत्तर सही रे, उदय प्रकृति सो होत ॥ जूओ जूओ ॥३०॥ केम फिरि आधे जीव मिथ्यात्वमा रे, किम समकित पामें सोय; ए गुणठाणे काल धर्म नही जीवने रे, ए वात निश्चय ॥१३२॥ होय ॥ जूओ जूओ ॥३१॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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