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________________ ShriMahavirain AamanaKents: Acharya Sh Kailasagersuri Gyanmandit शांतिनाथ स्तवन श्रीचतु- ढाल-३जी-देश सोरठ द्वारापूरी|अथवाजुओ जुओ अचिरज अति भलं॥ए देशी॥धन धन ते दिन दश गुण-तेघडी, जब पामुं चोथु गुणठाणुंरे; जे हर्ष ते दिन उपजे, कहो केम ते वखा[रे धन धन ते दिन ते घडी स्थान | ए आंकणी॥३२॥ कषाय जे अप्रत्याख्यानीया, रोके गुणवत तेहरे; केवल समकित जिहां अनुभवि, उच्छेदे मिथ्यात्व जेहरे; धन धन० ॥३३॥ कहूं भेद हवे समकितना, क्षाइक वेदक निरधाररे;क्षयोपसम उपसम रुचक वली, कारक दीपक प्रकाररे; धन धन०॥३४॥ च्यार कषाय जे अनंतानु बंधिआ,मोहनी मिश्र सम कित मिथ्यातरे; ए सातेना क्षये क्षायिक हुए, ए उपशमे उपशम विख्यातरे;धन धन०॥३५॥ क्षयोपशम काइ क्षिणतो, रुचिक रुचि करि जाणुंरे; धर्म करे कारक भलं, दीपक दीवा परि मानुरे; धन धन०॥ ३६ ॥ करुणा वच्छल सज्जन पणुं, करि आतम निंदा जेहरे; समता भक्ति वैरी ग्यता, धर्मराग आठ गुण एहरे; धन धन ॥ ३७॥ जीवादिक नव तत्व जे, तिहां उपजे नही संदेहरे; सहज नही प्रपंचर्नु, समकित लक्षण एहरे; धन धन०॥ ३८ ॥ ज्ञान गरव मति मंदता, १ उपशम । २ क्षयोपशमे । ३ उपशम । ४ विराजता । शां० २३ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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