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Sahankan
श्रीचतु- दश गुण-
स्थान
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न जाय; पण अश्रुद्ध । करि जे जिन दर्शण लही रे, ते वात हैये न समाय ॥ जूओ जूओ ॥१८॥ शांतिएक मलीन वस्त्र पहेरी कष्ट क्रिया करे रे, वली कहे अम्हे अणगार; करे बाहिर यतना लोक देखा नाथ डवा रे, अंतर यतना नही लगार ॥ जूओ जूओ ॥ १९ ॥ आप प्रशंसे पर निंदे घणुं रे, सिद्धांत
स्तवनम् भणी थापे निज मति; कलह कारी कदाग्रहथी भस्या रे, ते देखी मूढ पामे रति॥जूओ जूओ॥२०॥ एक जिन प्रतिमानी अविधि करे घणी रे, विनय न जाणे लगार; पुत्र कलत्र धन संपद।भणी रे, यात्रा माने वारंवार ॥ जूओ जूओ ॥ २१ ॥ एक मूढ जिन प्रतिमा माने नही रे, कहे अहीं आरंभ अपार; बीजी व्यवहारनी करणी करे घणी रे, धरि चित्तशु द्वेष गमार ॥ जुओ जूओ ॥ २२ ॥ एका द्रव्य संयम लेइ विकथा मांहि नीगमें रे, देव धर्म न जाणे धुर; आत्म तत्वनी खबर पडे नही रे, एम वाध्यु मिथ्यात्वर्नु पूर ॥ जूओ जूओ ॥ २३ ॥ उपशम समकित लहि पडतां थकां रे, जीव आवे बीजे गुणठाण; तिहां छ आवली समकित फरशे सही रे, खीर खांड वमन समान ॥ जूओ जूओ ॥ २४ ॥ नरक गति आयु आनुपूर्वी ए त्रण कहीरे, एकेंद्रियादिक च्यार जाति; थावर सुक्ष्म अप
ASHIKARAN
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