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श्रीबीजनुं
श० २२
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ते मुक्ति महंत रे भवी० भाव० ॥ २ ॥ मारग मिथ्या दुरे तजो रे लाल, आराधो गुण नाथ रे भवि०; विरनी वाणी सांभली रे लाल, उच्छ रंग थयां बहु लोक रे भवी० भाव० ॥ ३ ॥ एणे बीजे केइ तय रे लाल, वली तरश्ये केइ सेवरे भवि०; शशी सिद्धी अनुमानथी रे लाल, शील नाग घरो अंकरे भवि० भाव० ॥ ४ ॥ आशाढ शुदि दशमी ने दिने रे लाल, ए गायो स्तवन रसाल रे भवि०; | नवल विजय सुपसायथी रे लाल, चतुर ने मंगल माल रे भवी० भाव० ॥ ५॥ कलश - इय वीर | जिनवर सयल सुखकर गाइयो अति उल्लट भरे, आषाड उज्ज्वल दशमी दिवसे संवत अढार अट्टो त्तरे; बीज महिमा इम वर्णव्यो रही सिद्धपुर चोमासुं ए, जेह भाविक भावे भणे गुणे तस घर लील विलास ए ॥ ६॥
"इति श्री बीज स्तवनम् सम्पूर्णम्”
"अथ श्री चोवीश जिननां - आंतरानुं स्तवन"
दुहा— शारद शारदा सुपरे, पद पंकज प्रणमेव; चोवीसे जिन वर्णकुं, अंतर जिन संक्षेप
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स्तवनम्