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________________ चोवीश HAL जिन ॥१२७॥ ॥१॥ वीर पार्श्वने आंतर, वर्ष अढीसे होय; पंच कल्याणक पार्श्वना, सांभलजो सहु आंतरानुं 5॥ २॥ ढाल-१-प्रथम ॥पंच महाव्रत आदरो साहेलडी रे॥ए देशी ॥ नीरूपम नयरी वणारसी स्तवनम् जी, श्री अश्वसेन नरीद तो; वामा राणी गुण भांजी, मुख जीम पुनेम चंद-भवि भाव धरिने प्रणमो ए पास जीणंद तो ॥ए आंकणी ॥ १॥ प्राणत कल्प थकी चव्या जी, चैत्र वदि चोथ ने दीन तो; तेहनी कुखे अवतयाँ जी, प्रभु जीम किन्नर सिंह ॥ भवी० ॥ २ ॥ पोष बहुल दशमी दिनें जी, जनम्या ए पास कुमार तो; जोबन वय प्रभु आवीयां जी, वरीया प्रभावती नार ॥ भवि०॥३॥ कमठ | तणो मद गारीजी, उद्धयों नाग सजोड लीयो तो; वद अगीयारस पौषनी जी, संयम लीयो ऋद्धि छोड ॥ भवी०॥४॥ गाज वीज ने वायरोजी, मुशल धारा मेह तो; उपसर्ग कमठे को जी, धरणेंद्रे निवार्यो तेह॥भवी०॥५॥ कर्म खपावी केवल लद्यु जी, चैत्र वदि चोथ सुजाण तो; श्रावण शुदि ॥१२७॥ दीन आठमेजी, प्रभुजीनो निर्वाण ॥ भवी०॥६॥ एकसो वर्षतुं प्रभु आउखुं जी, पास चरित्रे कडं एम तो; वर्ष चौराशी सहसनुं जी, आंतरु पासने नेम ॥भवी०॥७॥ KAROCENG 4-%A5% E For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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