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________________ SM Mahavam A n Kendi www.kobateh.org. Acharya Sh Kailassac Gamendi जनुं * भावण शुदनी की श्रीबी- जीरे, अवगाहन एक वार मुक्ति मोझार भवि प्राणीजीरे ॥ २॥ अरनाथ जिनजी नमुं सुण प्राणीस्तवनम् , अष्टादशमो अरीहंत ए भगवंत भवि प्राणीजीरे; उज्वल तिथी फागुणनी भली सुण प्राणी ॥१२६॥ जीरे, वरिया शिववधु सार सुंदर नार भवि प्राणीजीरे ॥३॥ दशमा शितल जिनेश्वर सुण प्राणी जीरे०, परम पदनी वेल गुणनी गेल भवि प्राणीजीरे; वैशाख वद बिज दिने सुण प्राणीजीरे०, मूक्यो सर्वे ए साथ सुरनर नाथ भवि प्राणीजीरे ॥४॥श्रावण शुदनी बीज भली सुण प्राणी जीरे, सुमति नाथ जिन देव सारे सेव भवि प्राणीजीरे; इण तिथी ए जिन भला सुण प्राणीजीरे०, कल्याणक पांचे ए सार भवनोपार भवि प्राणीजीरे ॥५॥ ढाल-२-जी॥श्री सिद्धचक्र आराधिय रे लाल ॥ ए देशी ॥ जगपति जिन चोवीशमोरे लाल, जाए भाख्यो अधिकार रे भविक जन; श्रेणिक आदि सहु मिल्यां रे लाल, शक्ति तणे अनुसार रे भविक जन॥ भाव धरिने सांभलो रे लाल, आराधे धरि खांतरे भवि० भाव० ए आंकणी ॥१॥ ॥१२६॥ दोय वर्ष दोय मासनी रे लाल, आराधो धरी खांतरे भवि० उजमणुं विधीशुं करोरे लाल, बीज सव भवि प्राणी िए सार R-7- 5AM-*-ॐॐॐका ISISAARI For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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