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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra Achen Kaiser amandi स्तवनम् श्रीरोहिन योरे, दुरगंध पणुं गयुं दूर-नामे सुगंधी कुमर थयो रे, रोहिणी तप महिमा सार-सांभलता णी तपर्नु नवि विसरेरे ॥ए आंकणी ॥१॥ रहि वात अधुरी एह-सांभलश्यो रोहिणी ने भवेरे, इम सुणी दुर्गधा नारी-रोहिणी तप करे ओच्छवेरे; सुगंधी लही सुख भोग-खर्गे देवी सोहामणीरे, तुज कांता मघवा धुअ-चवि चंपाए थइ रोहिणीरे ॥ रोहिणी०॥२॥ तप पुण्य तणे प्रभाव-जन्मथी दुःख न देखियुरे, अति स्नेह किस्यो अम साथ-राय अशोके वली पूछीउंरे; गुरु बोले सुगंधी राय-देव थइ पुखला वतीरे, विजये थइ चक्री तेह-संजम धरि हुआ अच्युत पतिरे ॥ रोहिणी० ॥३॥ च्यबिने थयां तमे ६ अशोक-एक तपे प्रेम बन्यो घणोरे, सात पुत्रनी सुणज्यो वात-मथुरामां एक माहणोरे; अग्निशर्मा वसुत सात-पाडलीपुर जइने भिक्षा भमेरे, मुनी पासे लही वैराग्य-विचयां साते रही संयमेरे । है रोहिणी० ॥ ४ ॥ सौधर्मे हुआ सुर सात-ते सुत साते रोहिणी तणारे, वैताढ्ये भल्ल चूल खेट-समकी त शुद्ध सोहामणारे; गुरु देवनी भक्ति पमाय-धुर स्वर्गे थइ देवतारे, लघु सुत आठमो लोकपाल रोहिणीनो ते सुर सेवतांरे ॥ रोहिणी०॥५॥ वलि खेट सुता छे च्यार-रमवाने वनमा गइरे, *ARUSSASSIM 564GULARAK For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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