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________________ ShriMahavirain AamanaKendra Acharya Sh Kailasagar Gyanmandi श्रीरोहिणी तपर्नु E0% स्तवनम् ॥१२५॥ SAHASR454 45 तिहां दिठां एक अणगार-भाखे धर्म वेला थइरे; पुछयांथी कहे मुनि तास-आठ पहोर तुम आयुछेरे, आज पंचमीनो उपवास-करश्यो तो फल दायछेरे ॥ रोहिणी०॥६॥धुजंति करी पच्चक्खाणगेह अगासे जइ सोवतीरे, पडि विजलीयें बली तेह-धुर सुरलोके देवी थतीरे; च्यवि थइ तुम पुत्री च्यार-एक दिन पंचमी तप करिरे, इम सांभली सह परिवार-वात पूर्व भवनी सांभलीरे॥रोहिणी० ॥७॥ गुरु वंदी गयां निज गेह-रोहिणी तप करता सहरे, मोटी शक्ति बहुमान-उजमणामां वस्तु बहु रे; इम धर्म करी परिवार-साथे मोक्षपुरि वरिरे, शुभ वीरनां शासन मांहि-सुख फल पामो तप आदरीरे ॥ रोहिणी०॥८॥ कलश-इम त्रिजग नायक मुक्तिदायक वीर जिनवर भाखियो, तप रोहिणीनो फल विधाने विधि विशेषे दाखीओ; श्री क्षमाविजय जश विजय पाटे शुभ विजय समता धरो, तस चरण सेवक कहे पंडित वीर विजयो जयकरो ॥१॥ "इति पंडित वीर विजय रचित श्री रोहिणी तप विधि स्तवनम् सम्पूर्णम्" ॥१२५॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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