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स्तवनम्
समकित- सुख०॥४८॥ पयडि सात मिथ्यादिका, सखि क्षय करी ने तिहां ठाय; बांध्यु पूर्वे आउखु, सखि पच्चीशीनआउ त्रण चार भवें सिद्ध थाय ॥ सुख०॥४९॥ बांध्युं न होवे आउखु, सखि पाम्यो क्षायक जेहा
ते निश्चय वीरजिन कहे, सखि जिन कहे ते भविजाए शिवगेह ॥ सुख०॥५०॥ ॥११७॥
| ढाल-८-मी॥ लक्षण पांच कह्यां समकित तणां॥ए देशी॥चार प्रकारे समकित दाखीउं, साखा दन समकित ॥ सुगुणनर; सहित तथा जे अनंतर भाखीउं, तस लक्षण सुणो मित्र॥सुगणनर॥वीरजी नेश्वर भाषे एणिपरे ॥ ए आंकणी ॥ ५१ ॥ गुड आदिक जिम वमन करे तथा, माल थकी पडे | जिम ॥सुगुणनर; उपशमथी पडतो अण पहोचतो, मिथ्यात्वे होय तेम ॥ सुगुणनर ॥ वीर ॥५२॥
वेदक युक्त करे पंचविध तदा, दोय पुंज क्षय करंत; सुगुणनर; त्रीजा पुंजने चरम समय यथा, |श्रुद्ध अणु ते वेदंत ॥ सुगुणनर ॥ वीर ॥ ५३॥
ढाल-९-मी ॥ जिन जिन प्रतिमा वंदन कीजे ॥ ए देशी ॥ काल प्रमाण का पंच केरा, उपशम महूर्त पट्; आवलि प्रमाण कहे जिन, सास्वादन समकित रे ॥ भविका वीर वचन चित्त
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