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SM Mahavam A
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स्तवनम्
मसकीतपच्चीशीनुं
|धरीये ॥ ए आंकणी ॥५४॥ समय एक वेदक होय समकित, उदधि तेत्रीश झाझेरा; क्षायक
क्षय उपशम ने छासट्ठी, सागर कह्या अधिकेरा रे ॥ भविका ॥ ५५ ॥ उत्कृष्टं, सास्वादन उपशम, |पंच वार ते आवे; वेदेक क्षायक एक वार ते, जे आव्यु नवि जावे रे । भविका ॥ ५६ ॥ वार असं ख्याती क्षय उपशम, बीअ गुणे सासाण; चोथाथी अगीयारमा सुधि, उपशम समकित ठाणरे ॥ भविका ॥ ५७॥ चोथाथी वली चउदमा सुधी, क्षायक समकित जाणो; वेदक क्षय उपशम |चोथाथी, सात लगी गुणठाणो रे ॥ भविका ॥ ५८॥ __ढाल-१०-मी ॥ ठरे जिहां समकित ते स्थानक ॥ ए देशी ॥ शुद्धि लिंग त्रण लक्षणं दूषण, भूषण पंच विचारो रे; आठ प्रभावक षट् आगारा, सदृहणा चउँ धारो रे ॥ ५९ ॥ जया भावण ठाण ते षट् षट्, दर्श विध विनय उदारो रे; सडसट्टि भेद अलंकृत समकित, भाष्यो जिन सुख कारि रे ॥६०॥ वाचक जश विजये ए प्रपंच, कीधो जेह सझायो रे; तिणे विस्तार न आण्यो| एहमां, ते कहेता बहु थायो रे ॥ ६१ ॥ एह स्तवन सइहीने भणता, समकित निर्मल थायरे; वीर
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