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SM Mahavam
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समकीत- पच्चीशीनु
जिम कोइक निजथी लहे, मारग तिम इंहा हुँतरे ॥ समकित प्रापण विधि वहुं ॥ए आंकणी ॥३३॥ कोइक पर उपदेशथी, लहे मार्ग तिग प्राणीरे; समकित लहे कोइ गुरु थकी, जिननो मारग है. जाणीरे ॥ समकित ॥ ३४ ॥ गंठी देश आव्यो थको, पाछो ते वली जायरे; ज्वर द्रष्टांत तिम जायें, सहेजे पण क्षय थायरे ॥ समकित ॥ ३५॥ उपदेशथी अस्वभावथी, कोइ मार्ग नवि पामेरे; तिम अभव्य दुर्भव्यवा, न लहे ते गुण कामरे ॥ समकित ॥ ३६ ॥ कोइक वैद्य औषध थकी, कोइकने स्थिर थावेरे; इम मिथ्या ज्वर सहेजथी, गुरुथी जाय वा न जावेरे ॥ समकित॥ ३७॥ भव्यने त्रण| गति होवे, त्रीजी अभव्यने एकरे; कोद्रवनो द्रष्टांत जे, सुणीए तेह विवेकरे ॥ समकित ॥ ३८॥ __ढाल-६-थी ॥भोलीडा हंसारे विषय न राचीये॥ए देशी॥मदन कोदरा रे जेम खभावथी, उतरे मद विकार; कोइक गोमय आदि उपायथी, कोइक नवि होय सार ॥ भावे भविअण समकीत |॥११६॥ आदरो ॥ ए आंकणी ॥ ३९ ॥तिम मिथ्यात्वना पुंज त्रिविध करे, शुद्ध मिश्रने अशुद्ध तेह; अपूर्व करण परिणामथी, जल चिवर सुणो बुध ॥ भावे०॥४०॥ जिम जल चिवर होये मेलडु, जिम
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