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Sahankan
Acharya Sh Kaisagersuri Syamandie
अष्टमीन
स्तवनम्
॥११३॥
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अविचल राजे, दिन दिन दोलत वाधे रे; श्रीजिनराज जगत उपगारी ॥२॥त्रीशलारे नंदन दोष नीकंदन, कर्म शत्रुने जीत्यां रे; तीर्थंकर महंत मनोहर, दोष अढारने वरत्यां रे ॥ श्रीजिन ॥३॥ मन मधुकर जिन पदकज लीनो, हरखी निरखी प्रभु ध्याउं रे; शीव कमला सुख दीओप्रभुजी, पूर्णानंद पद पाउंरे ॥ श्रीजिन ॥४॥ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी वृष्टि, चमर छत्र वीराजे रे; आसनभामंडल जिन दीपे, दुंदुभि अमर गाजे रे॥ श्रीजिन ॥ ५॥ खंभात बंदर अतिय मनोहर, जिन प्रा-5 साद घणां सोहे रे; बिंब संख्यानो पार न लडं, दरीशण करी मन मोहे रे ॥ श्रीजिन ॥ ६॥ संवतअढार ओगणचालीश वर्षे, आश्विन मास उदारो रे;शुक्ल पक्ष पंचमी गुरुवारे, स्तवन रच्यु छे त्यारे रे॥ श्रीजिन ॥७॥ पंडित देव सोभागी बुधी लावण्य, रत्न, सौभागी तिणे नामेरे; बुधी लावण्य लीओ, सुख संपूर्ण, श्री संघने कोड कल्याण रे ॥ श्रीजिन० ॥८॥
"इति श्री अष्टमी- स्तवनं संपूर्णम्"
॥११३॥
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