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Acharya Sh Kailasagar
Gyanmandi
स्तवनम्
SCRESCRECECA
समकित
"अथ श्री समकित पञ्चीशीनुं स्तवन" पच्चीशीन
दुहा-वंदु वीर जिणंदने, समरूं सरस्वति मात; पदकंज प्रणमुं गुरु तणां, कहेवा समकित वात ॥१॥जिम स्वरुप समकित तणो, भाख्यो वीर जिणंद; तिम भा गुरु साक्षिथी, पाम परमाणंद ॥ २॥ स्वामि अनादि अनंतजे, चिहुं गति एह संसार; मोहादिक गुरु स्थिति थकी, भमे अनंती वार ॥३॥ यथा प्रवृत्ति करणे करी, आवे गंठी देश; पल्ल उपल दृष्टांतथी, यथा
प्रवृत्ति सुणो लेश ॥ ४॥ KI ढाल-१-ली॥ चउ सदृहणा ति लिंगछे॥ए देशी॥जिम कोइक गृहपति घरे, पालो धान्यनो भरी
ओरे; घर खरचे बहु काढीओ, थोडो तेहमां धरीओ रे ॥५॥ a त्रूटक–धर्यो तहेमां स्तोक इणीपेरे अनुक्रमे खाली करे, तिम कर्म भरीओ जीव क्षय करे बहु
स्तोक ग्रही भरे; अनाभोगथी अनुक्रमे इम बहु खपावी शुभमने, गंठीदेशे तदा बांधे, आयु विना
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