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________________ अष्टमीन रुडीने रढियालीरे प्रभुताहरी देशना रे, तेतोजोजन लगे संभलाय रे; त्रिगडे विराजे रे जिन दिये देश- | स्तवनमू ना रे, श्रेणिक वंदे प्रभुनां पाय; अष्टमी महिमा रे कहो कृपा करी रे, पूछे गोयम अणगार; है अष्टमी आराधन फल सीद्धनुं रे ॥ ए आंकणी ॥ १॥ वीर कहे तपथी महिमा एहनो रे, ऋषभर्नु जन्म कल्याण; रुषभ चारीत्र होय निर्मलं रे, अजितनुं जन्म कल्याण ॥अष्टमी॥२॥संभव च्यवन त्रीजा PIजिनेश्वरु रे, अभिनंदन निर्वाण; सुमति जन्म सुपास च्यवनछे रे, सुविधि नेमि जन्म कल्याण अष्टमी॥३॥मुनिसुव्रत जन्म अति गुणनिधि रे, नेमीशीवपद लद्यु सार; पार्श्वनाथ नीर्वाण मनोहरु |रे, ए तिथी परम आधार ॥ अष्टमी ॥ ४॥ उत्तम गणधर महिमा सांभली रे, अष्टमी तिथि प्रमाण; 8 मंगल आठतणी गण मालिका रे, तस घर शीव कमला प्रधान ॥ अष्टमी॥५॥ ढाल–४-श्री जिनराज जगत उपगारी, मुरति मोहन गारीरे॥ए देशी॥ आवश्यकनी नियुक्ति ए भाषे, माहानिशिथ सूत्रे रे;ऋषभ वंशदृढ वीरजी आराधे, शिवसुख पामे पवित्र रे॥श्री जिनराज जगत उपगारी ॥ ए आंकणी ॥१॥ ए तिथि महिमावीर प्रकाशे, भविक जीवने भाषे रे; शासन ताहरूं For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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