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अष्टमीं
॥११२॥
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लाला अड दृष्टी उपजे एहथी, शीव साधे गुण अंकुर रे लाला; सिद्धनां आठ गुण संपजे, शीव कमलारूप सरुप रे लाला ॥ अष्टमी ॥ ६ ॥
ढाल - २ - जीहो कुंवर बेठो गोंखडे ॥ ए देशी ॥ श्रीपालना रासनी ॥ जीहो राजगृही रलियामणी, जिहो विचरे वीर जिणंद; जिहो समवसरण इंद्रे रच्युं, जिहो सुरा सुरनां वृंद ॥ जगत सहु वंदो वीरजिणंद ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ जीहो देव रचित सिंहासने, जीहो बेठां श्री वर्द्धमान; जीहो अष्ट प्रातीहारज शोभतां, जीहो भामंडल झलकंत ॥ जगत ॥ २ ॥ जीहो अनंत गुणे जिनराजजी, जीहो पर उपगारी प्रधान; जीहो करुणा सिंधु मनोहरु, जीहो त्रिलोके जिन भाण ॥ जगत ॥ ३ ॥ जीहो चोत्रीश अतीशय बिराजतां, जीहो वाणी गुण पांत्रीश; जीहो बारे परर्षदा भावश्युं, जीहो भक्ति | नमावे शीश ॥ जगत ॥ ४ ॥ जीहो मधुर ध्वनी दीये देशना, जीहो जिम आषाढोरे मेघ; जीहो अष्टमी महिमा वर्णवे, जीहो जगबंधु कहे तेम ॥ जगत ॥ ५ ॥
ढाल - ३ - रुडीने रढियाली वाहला ताहरी वांसली रे, तेतो मारे मंदरीये संभलाय रे ॥ ए देशी ॥
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स्तवनम्
॥१९२॥