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Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis
सीमंधर -
खामी
॥१०५॥
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श्यो जी, तो एके तिक वात; लहि सहाय तुम्हारी जी, प्रगटे गुण अवदात ॥ कृपानिधि ॥ ३३ ॥ परम पुरुष परमे श्वरु जी, प्राणा धार पवित्र; पुरुषोत्तम हित कारकुं जी, त्रिभुवन जनना मित्र ॥ | कृपानिधि ॥ ३४ ॥ ज्ञान विमल गुणथी लह्यो जी, माहरा मननीरे होंश पूरिसि सुखियोसया करो जी, मुज मानस सर हंस ॥ कृपानिधि ॥ ३५ ॥
"इति श्री सीमन्धर स्वामी विनंति रूप स्तवनम् समाप्तम्”
"अथ श्री सीमन्धर स्वामी स्तवनम् "
दुहा—सुण सुण सरस्वती भगवती, ताहरी जग विख्यात; कवि जननी किर्त्ती वधे, तिम करज्यो मुज मात ॥ १ ॥ श्री सीमंधर स्वामी माहा विदेहमां, बेठा करेय वखाण; वंदणा माहारी त्यां जइ, कहेज्यो चंदा भाण ॥ २ ॥ मुज हीयडुं संशय भर्यो, किण आगल कहुं वात; जेशुं बांधु गोठडी,
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स्तवनम्
॥१०५॥