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________________ स्तवनम सीमंधर-IPIनदि वेल ॥ कृपानिधि ॥ २३ ॥ माया सापिणी पापिणी जी, मनछल मूकेरे नाहि; कोमल गुणने तेड विनंतियें जी, लोभ विलास अथाह ॥ कृपानिधि ॥ २४ ॥ धर्म तणे दंभे काँ जी, पूर्या अर्थने काम; तेणेथी त्रण भव हारियाजी, बोधि होय बलिवाम ॥ कृपानिधि ॥ २५॥ वस्त्रपात्र जन पुस्तकेजी, त्रसना दकिध अनंत; अंत न आवे लोभनो जी, कहुं केतो वृत्तांत ॥ कृपानिधि ॥२६॥ कल्पा कल्प विचारणाजी, राखी कांइ न संक; अनेषणिय परि भोगथी जी, रभ्यो चउगति जीम रंक ॥कृपानिधि ॥ २७ ॥ हवे तुम ध्यान सनाथता जी, आडो वलियोरे अंक; करुणा करिने राखीये जी, मत गणयो मुजवंक ॥ कृपानिधि ॥ २८ ॥ मुजने कहेतां नावडेजी, नाणे जे तुमदिठ; हुँ अपराधि ताहरोजी, खमजो अवनि अधिठ ॥ कृपानिधि ॥ २९ ॥ तुमे जिम जाणो तिम करोजी, हुँ नवि जाणुरे काइ; द्रव्य भाव सवी रोगनाजी, जाणो सर्व उपाय ॥ कृपानिधि ॥३०॥हुँ एक जाणुं ताहरू जी, नाम मात्र निरधार; आलंबन ताहरुंजी, तिणथी लहुं भवपार ॥ कृपानिधि ॥ ३१ ॥ माता सत्यकी नंदनोजी, रुखमणी राणीनो कंत; तात श्रेयांस नरेशछेजी, विचरंता भगवंत ॥ कृपानिधि ॥ ३२॥चित्त मांहिं अवधार For Fate And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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