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________________ SM Mahavam A kende www.kobatirth.org Acharyaan Kailasagerul Syamandi रूप स्तवनम् सीमंधर- कृपानिधि ॥४॥छठा गुणठाणा धणी जी, नाम धराव्यु रेस्वामि; आगम वयणे जोयता जी, न गयो विनंति कषायने काम ॥ कृपानिधि ॥५॥ रसना रामाने रमाजी, ए त्रणे पातिक मुल; तेहनी अहनीश चिंतना जी, करता भव थया धूल ॥ कृपानिधि ॥ ६ ॥ व्रत मुख पाठे उच्चरी जी, दिवस माहिं बहु वार; तेह नुरत विराधता जी, नाणी शकल गार ॥ कृपानिधि ॥ ७॥ धुलितणा देउल करि जी, जेम |पावसमारे बाल; थोमूला मुख इम वदे जी, तिम व्रत मे कर्यां आल ॥ कृपानिधि॥८॥आप अशुद्ध परने करुंजी, देइ आलोयण शुद्ध; मासा हंस पंखी परे जी, पाडे फंदे मुद्ध ॥ कृपानिधि ॥९॥ अछ्त्ता गुण नीसुणी मने जी, हरखं अति सुविशेष; दोष छता पण सांभली जी, तस उपरे धरु द्वेष ॥ कृपानिधि ॥ १०॥ परभव पर परिवादनाजी, परिपरि भारे आप; निज उत्कर्ष करूं घणो जी, एहिज मुज से |ताप ॥ कृपानिधि ॥ ११ ॥ निश्चय पंथ न जाणीओ जी, विवा हरिओ व्यवहार;मद मस्ते निःशंक थी जी, थाप्यो असदा चार ॥ कृपानिधि ॥ १२॥ समय संघयणादि दोषथी जी, नावे शुक्ल ध्यानः || सूहणे पण नवि आवियोजी, निराशंस धर्म ध्यान ॥ कृपानिधि॥१३॥ आर्त रौद्र बिडं अहनिशी जी, For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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