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________________ ShiMahayeJainrachanaKendra Acham Ka B andit %25% श्रीगोडी- हीणा ए ते इयुंकयुरे॥ए आंकणी॥१॥नावी लाज लगाररे, मुख देखाडीश मलोकमारे; धीग धिग् स्तवन. पार्श्व तुज अवताररे ॥ फीटफीटरे० ॥२॥ वीरडा न जाण्यु तें मन एहरे, ताहरी भक्तिनो कुण सल्ल खरे; माहरेतो कर्मे ए छाज्युं नहींरे, पडी दीसे छे मुजमा चुकरे ॥ फीट फीटरे०॥३॥ एहवा लख्यां ॥१०॥ छठीये अक्षरारे, हवेदीजे कीणने दोषरे; नीराधारी मेलीगयो नाहलोरे, मुजने नकीधो कही रोषरे ॥फीट फिटरे० ॥ ४ ॥ इम विलवंति मृगादे कहेरे, वीरातें तोडी मोरी आशरे; तुजने किम उकल्यु एहदुरे, जीवीस तीन पंचासरे ॥ फीट फिटरे० ॥ ५॥ कुड करीने मुजने छेतरीरे, कीधो तें मोटो। अन्यायरे; माहरा ना ना बेहु बालुडारे, केहने मलइये जइने धायरे ॥ फीट फीटरे ॥६॥ अधविच । रह्यां आजथी देहरारे, जगमां नामरह्यो नीरधाररे; नगरमां वात घरोघर विस्तरीरे, सहुकोना दिलमां आव्यो खाररे ॥ फीट फीटरे० ॥७॥ द्वेष राखीने मेघो मारीयोरे, एतो काजल कपट भंडाररे; मन | ॥१०॥ नो मेलोने धीठो एहवोरे, एम बोले नरने नाररे ॥ ८॥ ढाल–१३ मी-प्रीत पूर्व पून्य पामीए ॥ ए देशी ॥ बेहनी अग्नी दाह देइकरी, आव्यां सहु । For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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