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________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगोडीपार्श्व www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - ११ मी - काबिलरो पाणी लागणो काबील मतचालो ॥ ए देशी ॥ न्यात जमाडे आपणी, | देइने बहुमान; वरकन्या परणाविया, दीघां बहुदान ॥ १ ॥ काजल कहे नारीभणी, मेघाने अमे भेलां; जिमण देजे वीष भेलीने, दुधमां तेणी वेला ॥ २ ॥ दुधतणी छे आखडी, तुमने कहीश हुं रीसे; मेघाने मेलवो नहिं, पीरस्युं, जमण ते पीस्यें ॥ ३ ॥ तवनारी कहे पीउजी, मेघाने मत मारो; कुलमां लंछन लागइयें, थाइये पंचमा कारो ॥ ४ ॥ काजल ते माने नहीं, नारी कहीने हारी; मनभांग्यो मोती आड्यो, तेहने न लागे कारी ॥ ५ ॥ एम शीखवी नीज नारिने, जीमवा बेहु बेठां; भेलां एकण थालमा, हैये हर्षे हैठा ॥ ६ ॥ दुध आण्युं तिण नारिए, पीरस्युं थालि माहिं; काजल कहे मुज आखडी, पीधो मेघे त्यांहिं ॥ ७ ॥ मेधाने हवे तत्क्षणे, विष व्याप्युं ते अंगे; श्वासो श्वास रमीगयां, पाम्या गति सुरंग ॥ ८ ॥ ढाल - १२ - कीहारे गुणवंती मारी जोगणीरे ॥ ए देशी ॥ आवी मृगादे पीउने देखीनेरे, रोती कहे तिणि वाररे; मइओनेमेरो तेपण बिहुं जणारे, अतिघणो करे पोकाररे ॥ १ ॥ फिट फिटरे कुल For Pitvale And Personal Use Only 6%%%%%%%%% स्तवन.
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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