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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobateh.org. Acharya Sh Kailasageri Gyanmandi स्तवन. 55 श्रीगोडीपार्श्व, ॥९ --- पाम्या केवलज्ञान के आविनर सेवतां ॥३॥ वर्ष सोनुं आउखु भोगवी उपन्या, ज्योतमांहि मलिज्योति तिहांनही सुखमना; पाटण मांहि मूरत त्रणे पासनी, भरावी भोयरामांहि राखे केइ मासनी ४॥ एकदिन प्रतिमा तेह गोडिनी लेइकरी, पोताना आवास माहिं तरके धरी; खाड खणीने मांहि | घालि तरके जिहां, सूए नित्यप्रत्ये तेह शय्या वालि तिहां ॥५॥ एकदिन सुहणामांहि आवी यक्ष|इम कहे, तेणे अवसर ते तरक हीयामां सदृहे; नहिंतर मारिश मरडीश हवे हुँ तुजने, तेमाटे घर |माहेथी काढे मुजने ॥ ६॥ पारकर माहिथी मेघाशाह आवशे, ते तुज देशे टका पांचसे लावशे; देजे मूरत एहके काढी तेहने, मतकरजे कोइ आगल वात ए केहने ॥७॥ थाश्ये कोडीकल्याणके ताहरे आजथी, वाघश्ये पांचमांहि नामके लाजथी; मनसुंबीनो तरक थाए ते आकुलो, आगल जे थाशे वात ते भवीयण सांभलो ॥८॥ ॥९५ ॥ | दुहा—मनशुं बीनो तरकडो, बडा भूतहे कोय; अबसताब प्रगट करे, नहितर मारशे सोय ॥१॥ ढाल-२-बीजी ॥ माहरा घणु रे सवाइ ढोला ॥ ए देशी ॥ लाख जोयण जंबु प्रमाण, तेहमां है। - -- For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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