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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobateh.org. Acharya Sankalaager Gamandi स्तवन ACACA श्रीगोडी- भरतक्षेत्र प्रधान रे; माहरा सुगुण सनेही सुणज्यो॥ ए आंकणी ॥१॥पारकर देश ते रूडों, पार्श्व. जिमनारिने शोभे चुडो रे ॥ मा०॥२॥ शास्त्रमांहिं जिमगीता, तिम सतीओ मांहिं सीतारे ॥ मा; वाजींत्र मांहिं जिम भेर, तिम पर्वत मांहिं जिम मोटो मेरुरे ॥ मा०॥३॥ देवमांहिं जिमइंद्र, ग्रहगणमाहिं जिम चंद्ररे ॥मा०; ॥ बत्रीशसहस तिहादेश, तेमां पारकरदेश विशेषरे ॥ मा०॥४॥ भूधेसर नामे नयरी, तिहां रहेतां नथी कोइ वैरी रे ॥ मा०; तिहांराज्य करे खेंगार, तेजात तणो परमाररे ॥ मा०॥ ५॥ तिहां वणीज करे वेपारी, अपछरा सरखी तसनारीरे ॥ मा०; मोटा मंदिर प्रधान, तीहां चौदसया बावनरे ॥ मा०॥६॥ तिहां काजलशा व्यवहारी, सहु संघमांछे अधी कारीरे ॥ मा; तस पूत्र कलत्र परीवार, जस माने घणुं दरबाररे ॥ मा०॥७॥ ते काजलशानी है Pबहेन, सा मेघो कीधो जमाइ रे ॥ मा०; एकदीन सालो बनेवी, बेठां वातो करेछे एहवीरे ॥ मा० Filmc॥ इहांथी धनजइ लावो, वस्तु केइरे अणावारे ॥मा; गुजरातमाहे तुमे जाज्यो, जिमलाभ आवे तो लेज्योरे ॥ मा०॥९॥ -956 For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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