SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगोडीपार्श्व. www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir "अथ श्री गोडी पार्श्वनाथजीनुं स्तवन" दुहा - भावधरी भजना करूं, आपो अविचल मात; लघुताथी गुरुता करे, तुं शारद सरस्वत | ॥ १ ॥ मुज उपर मया धरो, देज्यो दोलत दान; गुणगाउं गोडी तणां, भावे भावे भगवान ॥ २ ॥ धवलधिंग गोडी घणी, सहुको आवे संग; महेमदावादे मोटको तारंगो नवरंग ॥ ३ ॥ प्रतिमा त्रणे पासनी, प्रगटी पाटण मांहि भक्ति करे जे भविजना, कुण ते कहेवाय ॥ ४ ॥ उत्पत्ति तेहनी उच्चरुं, शास्त्र भणी करि शाख; मांहि गुण मोटातणां भाखे कवीजन भाख ॥ ५ ॥ दाल - १ - १हेली ॥ नदियमुना के तीर उडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ काशिदेश मोझार के नयरी वणारसी, एह समोवड कोयनहीं लंकाजसी; राज्यकरे तिहाराजके अश्वसेन नरपति, राणी वामानंदके तेहने दिनपति ॥ १ ॥ जन्म्या पासकुमार के तेणी राणीये, ओच्छव कीधो देवके इंद्र इंद्राणीये, यौवन परण्या प्रेमके कन्या प्रभावती, नीत्य नीत्य नव नवा वेश करीने देखावती ॥ २ ॥ दिक्षालेइ वनवास रह्या काउस्सग्ग जिहां, उपसर्ग करवा मेघमाली आव्यो तिहां; कष्टदेइ तेह गयो ते देवता, For Pitvate And Personal Use Only स्तवन.
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy