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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobathrtm.org Acham Ka B andit श्रीआदीश्वर महोच्छव करवा, आवे इंद्र इंद्राणीरे हमचडि ॥ १॥ सुर परिवारे परिवों रे, मेंरु शीखरे लेइ जाय; स्तवन प्रभुने नमण करीने पूजी, प्रणमी बहु गुण गायरे हमचडि ॥२॥ आणी माता पासे महेली, सुर सुरलोके पहोता; दिन दिन वाघे चंद्र तणीपेरे, देखी हरखे मातारे हमचडि ॥ ३॥ वृषभतणुं लंछन| प्रभु चरणे, माता पिता देखे; सुपनमांहि वली वृषभज पहेलो, दीठो उज्ज्वल वगैरे हमचडि ॥ ४॥ तेहथी माता पिताए दीg, ऋषभ कुमार गुणगेह; पांचसे धनुष्य प्रमाणे उंचि, सोवन वर्णी देहरे हमचडि० ॥ ५॥ वीश पूर्व लाख कुंवर पणेरे, रहीया प्रभु गृहवासे; सुमंगला सुनंदा कुंवरी, परण्या है| दोय उल्लासेरे हमचडि०॥६॥ त्रीशलाख पूर्व गृहवासे, वसीया ऋषभ जिणंद; भरतादिक सुत शत हुआ रे, पुत्रीदोय सुख कंदरे हमचडि० ॥ ७॥ तव लोकांतीक सुर आवीने रे, कहे प्रभु तीर्थ । स्थापो; दान संवच्छरि देइ दीक्षा, समय जाणि प्रभु आपेरे हमचडि०॥८॥ दिक्षा महोच्छव करवा आवे, सपरिवार सूरिंदो; शीविका नामे सुदर्शना रे, आगल ठवे नरिंदोरे हमचडि० ॥९॥ ढाल-४चोथी॥राग-मारु॥ए देशी।चैत्रवदि आठम दिने रे,उत्तराषाढारे चंदशिबिकाए बेसी For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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