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________________ SM Mahavam A kende Acharya Shm KailassagarsuriGyanmandir स्तवन श्रीआ- गया रे, सीद्धार्थ वन चंदोरे ॥ ऋषभ संयम लीए ॥ ए आंकणि ॥१॥ अशोक तरुतले आवीने रे, दीश्वर |चउ मुट्ठी लोच कीध; चार सहस वड राजवी रे, साथे चारित्र लीधरे ऋषभ० ॥२॥ त्यांथी वि चाँ जिनपति रे, साधु तणो परिवार; घर घर फरतां गोचरी रे, महीअल करे विहार रे ॥ ऋषभ० ॥३॥ फरतां तप करतां थकां रे, वर्ष दिवस हुआ जाम; गजपुर नयर पधारीया रे, दिठां श्रेयांसे 8 ताम रे॥ ऋषभ०॥ ४॥ वर्षि पार' जिनजीए रे, शेलडी रस तिहां कीध; श्रेयांसे दान देइने रे, परभव शंबल लिध रे ॥ ऋषभ०॥ ५॥ सहस वर्ष लगे तप तपि रे, कर्म कर्यां चकचुर; पुरीमताल पुर आविने रे, विचरंता बहुगुण पूरो रे ॥ ऋषभ०॥ ६॥ फागण वदि इग्यारसे रे, उत्तरा| पाढा जोगे; अट्ठम तप वड हेठले रे, पाम्या केवल नाण रे॥ ऋषभ०॥७॥ | ढाल-५पांचमी ॥ कपुर होवे अति उजलो रे ॥ ए देशी ॥ समवसरण देवे मली रे, रचिउं अतिहि उदार; सिंहासन बेसी करि रे, दिए देशना जिन सार ॥ चतुरनर कीजे धर्म सदाय, जिमतुम शिवसुख थाय ॥ चतुरनर० ॥ ए आंकणी ॥ १॥ बारे पर्षदा आगले रे, सरकार ॥९ ॥ स For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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