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स्तवन.
दीवर
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आठमे भवे, सौधमें देवलोके देवरे, देवतणी ऋद्धि बहली पाम्या, देवतणा वली भोगरे ॥ सेवो
६॥ मुनी भव जीवानंद नवमे भवे, वैद थयो चवी देवरे; साधूनी वैयावच्च करी दीक्षा, लेइजपाले स्वय मेवरे ॥ सेवो० ॥७॥वैद जीव दशमे भवे स्वर्गे, बारमें सूर होय रे; तिहांकणे आयु में
भोगवी पूरुं, बावीश सागर जोयरे ॥ सेवो० ॥८॥ इग्यारमें भवे देव चवीने, चक्रीहुओ वज्रनाभरे; दीक्षा लेइ वीश स्थानक साधी, लीधो जिनपद लाभरे ॥ सेवो० ॥९॥ चौद लाख पूर्वनी दीक्षा, पाली निर्मल भावेरे; सर्वार्थ सीद्धे अवतरीआ, बारमे भवे आयरे ॥ सेवो० ॥ १०॥ तेत्रीश सागर आयु प्रमाणे,सुख भोगवे तीहां देवरे; तेरसमा भव केरो हवे हुँ, चरित्त कहुं संक्षेपेरे ॥सेवो०॥११॥ | ढाल-२ बीजी॥वाडी फूली अतिभली मन भमरा रे ॥ ए देशी ॥जंबुद्वीप सोहामणुं मनमोहना, लाख जोजन प्रमाण लाल मन मोहना; दक्षिण भरत भलं तिहां मन मोहना, अनोपम धर्मनुं ठाण लाल मन मोहना ॥१॥नयरी विनीता मांहि जाणीए मनमोहना०, स्वर्गपूरी अवतार लाल० नाभीराया कुलगर तीहां मन०, मरुदेवी तस नारिलाल०॥२॥ प्रितिभक्ति पाले सदा मन०, पीउशुं प्रेम
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