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________________ SM Mahavam A kende www.kobatirth.org Achan Kailas Gyamandi %-56- श्रीआदीश्वर ॥९१॥ -15ECOR-LCSCX उल्लास ॥१॥ सरस्वति स्वामिने विनQ, कविजन केरी माय; सरस वाणी मुजने दियो, मोटो| स्तवन. करिय पसाय ॥२॥ लब्धीविजय गुरु समरिये, अहनिश हर्ष धरेव; ज्ञानद्रष्टि जेहथी लही, पद पंकज प्रणमेव ॥३॥ प्रथम जिनेश्वर जे हुआ, मुनीवर प्रथम वखाण; केवलधर पहेलां कह्या, प्रथम भिक्षा चर जाण ॥४॥ पहेलो दाता ए कह्यो, आ चोविशिमोझार; तेहनां तेरभव वर्णq, आणि हर्ष अपार ॥५॥ ___ ढाल-१-पहेली॥धन्य धन्य संप्रति साचोराजा॥ए देशी॥ राग आशाउरी॥पहेले भवे धनसारर्थ वाहे, समकीत पाम्यो साररे; आराधि बीजे भवे पाम्या, युगल तणो अवतार रे॥१॥सेवो समकित है साचं जाणि, ए सवि धर्मनी खाणीरे; नवी पामे जे अभव्य अनाणि, एहवी जिननी वाणीरे॥सेवो० ॥ ए आंकणी ॥ २॥ युगल चवि पहेले देवलोके, भव त्रीजे सूर थायरे; चोथेभवे विद्याधर कुले थयो, महाबल नामे रायरे ॥ सेवो०॥३॥ गुरुपासे दीक्षा पालीने, अणसण की, अंतरे; पांचमे || ॥९१॥ भवे बीजे देवलोके, ललीतांग सूर दीपंतरे ॥ सेवो॥४॥ देवचवी छठे भवे राजा, बनजंघ इणे नाम रे; तिहांथी सातमे भवे अवतरिओ, युगला धर्मश्युं ठामरे, ॥ सेवो०॥५॥पूर्ण आयु करी RECESSAR For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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