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________________ ShiMahaveJainrachanaKendra Acharya S a sagerul Sya mandi कल्याणकर्नु स्तवन. SHARECARKISARKAR पूज्यतुं प्रेमकरी, पंचदिन जिनतणां मुक्तिदायी; इंद्र चंद्रादि देवामिली हरखशुं, जास महिमा करे सुगुण गाइ ॥ पूज्यरे० २॥ ए आंकणी ॥४०॥ मास आशो वदि पंचमी केवली, देव संभव भुवन भाव जाणे; बारसे पद्मप्रभु जन्म जग दुःखहरु, नेमीजिन च्यवन चित्त चतुरआणे॥पूज्यरे २॥४१॥ तेरसे पद्मप्रभ चारीत्र आदरे, वीर अमावास्या दीन शीव वखाणे; भरतने ऐरवत काल त्रि तणा, शाश्वता मास तिथि एह जाणो॥ पूज्यरे २॥४२॥च्यवन दीन वीर परमेष्ठिने तेम गणो, जन्म | अर अर्हते तेम विचारो; संभवनाथाय तिम व्रत दिवसे, अर सर्वज्ञाय नमः नाण धारो॥पूज्यरे २ ॥४३॥5 वीर पाङ्गगताय तेम गणो शिव दिवस, एहपद सर्व जिन नाम साथे; गणो कल्याणक दिवसे पद सहस्स बे, तप करी होय मुक्ति जिम हाथे ॥ पूज्यरे २॥ ४४ ॥ चंद्र रस ऋतु गगन वर्ष कल्याणक, स्तवन कीधं भविक भणत भावे: कीर्ति कोटि कल्याणक सख संपदा, सिद्धि सौभाग्य मिली वेग आवे॥पूज्यरे २॥४५॥ कलश-तप गच्छ अधिपतिनामित नरपति रूपे रति पति सुंदरा, श्री विजयसेन For Pavle And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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