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________________ ShiMahayeJainrachanaKendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailasager Gamandi स्तवन कल्याणकनुं ८८॥ PRAHARAMSANCHAR दिन भविलोगा, जग जेहना छे दुर्लभ जोगा; टाले आधि व्याधि सवि सोगा, दिए भव भव | मम वांछित भोगा ॥ आरा० ॥ ए आंकणी ॥ ३४ ॥ आषाढ वदि त्रीज वखाणुं, तिहां श्रेयांस मुक्ति मन आएं; सातमे च्यवन अनंत जिणंदा, आठमें नमि जनम्या जगचंदा ॥ आरा०॥ ३५॥ नवमि चव्या कुंथु जगदीश, श्रावण शुदि बीजे सुमति अवतारी; पंचमी नेमि जन्म जयकारी, छठे दीक्षा तजी राजुलनारि ॥ आरा० ॥ ३६ ॥ आठमे पास मुक्ति मन धारो, पुनिमे मुनिसुव्रत च्यवन चितारो; श्रावण वदि सातम तिथि सारी, शशिजिन सिद्ध शांति अवतारी ॥ आरा० ॥ ३७॥ आठमे सत्तम |जिनगामि, पृथिवीनयरे उपन्या स्वामि; भाद्रवा शुदि नवमे जिनराया, सीद्धा सुविधि धवल जसकाया ॥ आरा० ॥ ३८॥ भाद्रवा वदि नेमिसर नाणि, अमावास्या तिम ऊज्ज्वल जाणी; आशो शुदि पुनिम अवतरीया, एकवीशमा जीन गुणमणी भरीया ॥ आरा० ॥ ३९॥ ढाल-६ छट्ठी ॥ राग धन्याश्री ॥ हीचरे हीचरे हीच हीच हीडोलना ॥ ए देशी ॥पूज्यरे पूज्यरे ॥८८॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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