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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्या कनुं www.kobatirth.org. वीर ॥ आ० ॥ २६ ॥ बारसे विमल च्यवन कह्योरे, तेरसे अजित जिणंद वैशाख वदि छट्ठे अवतर्यारे, श्रेयांस जिन सुखकंद || आ० ॥ २७ ॥ आठमे मुनीसुव्रत जण्या' नवमि सोप्रभु सीद्ध शांति जन्म शीव तेरसेरे, चउदशे चारित्र लीध, ॥ आ० ॥ २८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल ४ - चोथी ॥ राग परजीओ ॥ अभंगो तुहाणगोलो ॥ ए देशी ॥ मम लेखण मात्र मनथी, मैत्र परे जे दुःख हरे; च्यवन आदि दिवस जीननां, पंच परगट सुख करे ॥ मम० ॥ ए आंकणी ॥ | ॥ २९ ॥ ज्येष्ठ शुदि पंचमी दिवसे, धर्म जिन शिवपद वरे; बारमा जिन चवी नवमि, जया उदरे अवतरे ॥ मम० ॥ ३० ॥ बारसे जन्म्य जिन सुपासो, तेरसे ते व्रत भजे; जेठ वदि जिन ऋषभ चोथे, नाभि नृप घरे उपजे ॥ मम० ॥ ३१ ॥ सातमे जिन विमल सिद्धा, नवमे नमिजिन व्रतधरे; आषाढ । शुदि छट्ठे वीर जिनपति, सीद्धारथ कुल अवतरे ॥ मम० ॥ ३२ ॥ सकल टाली कर्म आठम, नेमीजिन शिवसुख लहे; चउदसे जिन जया नंदन, महानंद रमावहे ॥ मंम० ॥ ३३ ॥ ढाल ५ - पांचमी ॥ राग मालवी गोडी ॥ कहो भविक निःकारण सार ॥ For Pitvale And Personal Use Only ए देशी | आराधो ए स्तवन.
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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