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हिंसादिक, तो आलोयण आवे ॥ ९ ॥ ढाल - पूर्वली ॥ अरिहंत चेइयाणं चोकिउं तप उपधान, | उपवासने आंबिल च्यार दिवसनुं मान; उपवास अढी जब तप संपूर्ण थाय, वायणा तव लीजें पामी सुगुरु पसाय ॥ १० ॥ नूटक-सुगुरु पसाले छकीउं वहीए, सात दिवस परिमाण; बे उपवासे पुखर वरदी, अढीए सिद्धाणं बुद्धाणं ॥ ११ ॥
ढाल - बीजी ॥ राग सोरठी ॥ उधारणदेशी ॥ काजसिधासकलहवेसार ॥ एदेशी ॥ भाइ हवे माल पहेरावो, साहमी साहमिणि नोतरावो; भला भोजन भक्ते करावो, रुपानी रकेबी घडावो ॥ १२ ॥ माहिं मेवा मीठाइ भरीए, हीरागल कमखो धरीए; चतुराइ चाल मचूको, माहिं रुपानाणुं मुको ॥ १३ ॥ चार पहोर देवरावो भास, गाए गंधर्व गुणरास; साहमी साहमिणि ने द्यो तंबोल, एम रात्रि जगो रंग रोल ॥ २४ ॥ एणिपरे माल जगावो, वाजा निसाण मंगावो; पंच सब्दा ढोल सरणाइ, सांबेला सबल सजाइ ॥ १५ ॥ कुंयर सिर खुप भरिजे, इंद्राणिने शणगारीजे; जिनशासन सोह चढावो, जगे बोधि बीज इम वावो ॥ १६ ॥ गयवर सीरे ठवीए माल,
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