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________________ SM Mahavam A kende Achan Kailas Gyamandi स - - टक-पडिकमणुं किया तो सुझे, जो वहिए उपधान; इम जाणि उपधान वहो तुमे, श्रावक पंच कर थना. थइ सावधान ॥३॥ स्तवन. ॥८१॥ | ढाल–पूर्वली ॥ नवकार तणो तप पहिलं अढारीउं होय, इरियावहि नो तप बीजं अढारी जोय; ए बिहु उपधाने दिन अढार अढार, उपवास एक एक तप होय साढाबार ॥४॥त्रूटकः-साढा बार उपवास ते कीजे, गुरु मुखे पोसह लीजे; चोथ एकांतर एक एकासगुं, पाप पडल सवि खीजे॥५॥ | ढाल-पूर्वली ॥ ए बिहं उपधाने मांडी नंदी मंडाण, पुजा प्रभावना ओच्छव करो सुजाणः । |क्रिया सवी शुद्धि साधुनी रहेणी-ए रहिए, देहरे देव वांदो सुमति गुप्ति निरवहिए ॥६॥ | त्रूटक-सुमति गुप्ति सुपरि आराधो, चैत्य वंदन न विसारो; दोय-सहस नवकार गणिने, || पोरिसी भणी संथारो ॥७॥ ढाल-पूर्वली ॥ पांचे उपवासे पहिली वायणा जोय, तप पुरे बीजी || गुरु मुखे वायणा होय; अॅठो जो छांडे तो तस दहाडो वाधे, तिम मुहपत्ति पडि जो शोधतांदा" ०९॥ नवि लाधे ॥८॥टक-तिम अकाल असझाय वमनज, दहाडो लेखे नावे; जीव घात विकथा - - For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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