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Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis
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नीकल्यो ए, युद्ध करणनें काज विकल चित्तथी थयो ए, इम रही तेलीनी लाज; ० ॥ ३ ॥ हालीने आठिम दिने ए, दीधुं मुहूर्त्त तत्काल; तिणे पण इम कयुं ए, खेडीश हल हुं कालः ॥४॥ कोप भराणो भूपती ए; इणे अवसर तिहां देव; वरसण लाग्यो घणुं ए, खेडि न थाये हेव; ० ॥५॥ त्रणे अखंड व्रत पालता ए, पुण्य अतुलथी तेह; मरीने खर्गे गया ए, छट्टे देवलोके जेह; ० ॥ ६ ॥ चौद सागरने आउखे ए, उपन्या ते तत्खेव; हवे शेठ उपन्या ए, बारमें देवलोके देव; त्र० ॥ ७ ॥ मैत्री थइ ते च्यारने ए, श्रेष्टि सुरने ताम; कहे त्रण देवता ए, प्रतिबोघजो अम्हखामि न० ॥ ८ ॥ ते पण अंगी करे तदा ए, अनुक्रमे चविआ तेह; उपन्या भिन्न देशमां ए, नरपति कुलमां तेह; त्र० ॥ ९ ॥ धीर वीर हीर नामथी ए, देशधणी वडराय; थया व्रत दृढथकी ए, बहु नृप प्रणमे पायः व्र० ॥१०॥ ढाल — पांचमी ॥ देशी ॥ सूरति महीनानी ॥ धीरपुरें एक शेठने, पर्व दिने व्यवहार; करतां लाभ होये घणो, शेठने अचरिज कार; अन्य दिने हाणी पण, होये पुन्य प्रमाण, एक दिन पूछे ज्ञानिने, पूर्व भव मंडाण ॥ १ ॥ ज्ञानी कहे सुण परभव, निर्धन पण व्रत राग; आराधीने पर्व तिथी,
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