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________________ Savanna Kendi van Kasagaranmandie शांतिना- सा०, कुटुंब सहित व्रत भालतो ॥ ५॥ धोवू नही चौदश दिने, सा०, तव नृप बोले जाणतोः पच क० स्तवन. थना- नृप आणाए नियम श्यो, सा०, जेहथी जाये प्राण तो॥६॥ सजन शेठ पण इम कहे, सा०, एहमा हठ ॥ ७५॥ नवि ताण तो; राज कोप अप भ्राजना, सा०, धर्मतणी पण हाण तो ॥७॥ वली रायाभिओगेणं. सा०, छे आगार पञ्चरकाण तो; तव धोबी चित्त चिंतवे, सा०, दृढता विणुं धर्म हाणि तो ॥८॥ धोवं नहि माम्यु तिणे, सा०, राये सुणी तेह वात तो; कुटुंब सहित निग्रह करूं, सा०, कालेजो हुं नृप साच तो ॥९॥ दैव जोगे ते रातमां, सा०, शूल व्यथा नृप थाय तो; हा हा कार नगर थयु, सार, इम दिन त्रण वही जाय तो ॥ १०॥ पडवे दिन धोइ करी, सा०, आप्यां वस्त्र ते राय तो; व्रत निर्वाह सुखे थयो, सा०, धर्म तणे सुपसाय तो ॥ ११ ॥ | ढाल-चोथी॥ भरत नृप भावश्यु ए॥एदेशी॥ नरपति चौदशने दिने ष, पाणी वाहन आदेशः जादः ॥ ७५॥ करे तेली प्रत्येए, रजक परे ते अशेष; व्रत नियम पालिए एएआंकणी॥१॥भूपति कोपे कल कल्यो हए, इण अक्सर परचक्र; आव्युं देश भांजवाए, महा-दुर दांत ते वक्र ०॥२॥ नृप षण सन्मुख For Private And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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