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________________ Acharya Sh Kailasagersuri Gyanmandie पंच क. % स्तवन शांतिना- नव संवते हु०, आशो शुदि दिन बीजरे हुं०; ए सद्दहतां परिणमें हुं०, धर्मरंग अठमीजरे हुं॥ श्री थना..॥ १८ ॥ सत्यवचन भाषक सदा हुं०, कपूरसमी जश कीर्तिरे हुं०; क्षमा गुणे को जय जेणे ९०, क्रोध सुभट सुविदित्तरे हुं०॥श्री० ॥ १९ ॥ श्री पद्मविजय गणि कहेणथी हुं०, कीधो ए अभ्यासरे हुं०; श्रीजिनराज पसायथी हुँ०, उत्तम लहे शिव वासरे ९० ॥श्री० ॥ २०॥ "इति श्री अल्प बहुत्व विचार गर्णित श्री महावीर जिन स्तवनम् सम्पूर्णम्" “अथ श्री आलोयणानुं स्तवन" ढाल-॥१॥ पास संखेश्वरा सारकर सेवका ॥ ए देशी ॥ एधन्य शासन वीर जिनवर तणो, जास परसाद उपगार थाये घणो; सूत्र सिद्धांत गुरुमुख थकी सांभली, लहीय समकित अनें निरति लहीए वली ॥१॥ धर्मनो ध्यान धर तप जप खप करे, जिणथी जीव संसार सागर तरे; दोषलागें गुरु मुखे आलोइये, जीव निर्मल हुवे वस्त्र जिम धोइये ॥२॥ दोष लागे तिके चार प्रकारनां, धुरथकी नामने अर्थ ते धारणा; किणही कारण वशे पापजे कीजीये, प्रथम.ते नाम संकल्प कहीजीये ॥३॥ E31 TU७१॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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