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________________ Sanna Kendre Acharya Sun Kailasagas Gyanmandie भाषा पद नामरे हुं०; शरीर पद तिहां बारमुं हुं०, तेरसुं पद परिमाणरे हुं०, ॥ श्री ॥ ९॥ चौदमु । चार ककषायनुं हुं०, इंद्री पन्नरमुं होयरे हुं०; उपयोग पदवली सोलमुं हुं०, लेश्या सत्तरमुं जोयरे । हु० ॥श्री ॥ १० ॥ कायस्थिति अढारमुं हुं०, समकित एगुण वीशरे ९०; अंतक्रिया पद वीशमुं हुं०, अवगाहना एकवीशरे हुं०॥ श्री०॥ ११॥क्रिया पद बावीशमुं हुं०, त्रेवीशमुं लहो कमरे ९०; कर्महै धक चोवीशमुं हुं०, सुणतां दिए शिव शर्मरे हुं० ॥ श्री० ॥१२॥ कर्मवेदक पचवीशमुं हुं०, वेद ब धक वली खासरे ९०; वेदवेदक सत्तावीशमु हुँ०, आहार पद सुविलासरे हुं० ॥ श्री० ॥१३॥ उपयोग पासणया भलुं हुं०, संज्ञी संजम साररे हुं०; अवधि पद तेत्रीशमुं हुं०, प्रविचारणा मन धाररे हुँ। An श्री० ॥१४॥ वेदना पद पांत्रीशमुं हुं०, समुद्घात पद जाणिरे हुं०; अनुक्रमें छत्रीश पद भला हुँ, सुणिए थिर मन आणिरे हुं०॥ श्री० ॥१५॥ एहमां त्रीजुं पद भलं हुं०, अल्प बहुत्व जस नामरे हुं०; तेहमांहि थकी उद्धर्यो हुं०, ए संबंध अभिरामरे १०॥ श्री०॥ १६॥ चरम जिनेश्वर गावतां हुं० संपूर्ण हुए होशरे हुं०; कीधो ए उद्यम रही ९०, राधनपूर चोमासरे हुं० ॥ श्री० ॥१७॥ अढार शत For Prve And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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