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SM Mahavam
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Achan Kailas
Gyamandi
॥ ७०॥
शांतिना-15 ढाल-॥३॥ करकंडुने करुं वंदणा हुं वारीलाल ॥ ए देशी ॥वस्यो अनादि निगोदमा हुं वारि-पंच क० थना. लाल, पुद्गल पर अनंत रे हुँ; तुज आणाविण दुःख सह्यां हुं०,सवि जाणो भगवंत रे हुं० श्रीवीरने जाउं स्तवन
भामणे ९०, ॥ए आंकणी॥१॥ त्रिशलादेवी मात रे हुं०, सिद्धारथनृप तातजी हुँ०, उत्तम कुल वंश, जात रे हुं० ॥श्री॥२॥श्रीनयसार भवें मिथ्यात्वथी हुं०, नीसरीआ मुनि साह्यरे हुँ; अनुक्रमे त्रिभुवन धणी हुं०, हुआ चरम जिन राजरे हुं०॥ श्री॥३॥ मोह निकंदन मूलथी हुं०, कीधो धरी शुक्ल ध्यानरे हुं०; वीतराग पद अनुभवी हुँ०, पाम्या पंचम ज्ञानरे हुं० ॥ श्री॥ ४॥ त्रिगडे बेठा देशना ९०,8 देताभवि उपगार रे हुं० द्वादश अंग रचना करे हं०, त्रिपदी लही गणधाररे हुं० ॥श्री ॥५॥
श्यामाचार्य गुणनिधि हुँ०; त्रेवीशमा पट धाररे ९०; पन्नवणा जिणे उद्धरी हुं०; श्रुत समुद्रथी साररे दाहुं०॥ श्री॥६॥ ते पन्नवणा सिद्धांतमा १०; छत्रीश पद अद्भूतरे हुँ; पन्नवणा प्रथम तिहां हुँ, बीजं ठाण अप्प बहुत्तरे हु० ॥श्री ॥७॥ चोथु स्थिति पद पांचमुं हुं०, विशेष व्युतक्रांत साररे हुं उसास पद कझुं सातमुं हुं०, आठमें संज्ञा च्याररे हुं०॥ श्री ॥८॥ ज्ञानी पद नवमुं कयुं हुं०, चरम
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