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________________ SM Mahavam A kende www.kobathrtm.org Achan Kailas Gyamandi शांतिना- थना. BACHECIAC चारिज तिम मुहपत्ती सुहाली ॥ १३ ॥ ढाल पूर्वनी-कागलने काठा खडीया वरतणां कांबी, झरमर पंचकर चंदुआ वालाकुंची लांबी; आरती धूप धाणा-मंगल दीपतें गार, प्रासादने प्रतिमा-तेहनां वलि स्तवन. शिणगार ॥ १४॥Jटक-सार सार जे वस्तु जगतमा ज्ञान दर्शन उपगरणां, केसर सुकड अगर कपूरह वाती ध्वज अंग लूहणां; पंच अथवा सगति पंच वीसह पंच वाटीनो दीवो, फल पकवान धान्य बहु मेवा कुसुम प्रमुख बहु लेवा ॥१५॥ ढाल पूर्वनी-पूर्व अघ उत्तर-दिशि विदिशि इशान-नमो नाणस्स पदने-ध्याओ थइ शावधान; साह्मी वत्सल कीजे-गीतगानें जागीजे, ए करणी करतां-ज्ञानने आराधीजे ॥१६॥ त्रूटक-साधीजे इम शिवपद साचुं, जिम गुणमंजरी वरदत्त; लहे सौभाग्य वली ज्ञान आराध्युं करी निज निर्मल चित्त; ते संबंध कथाथी कह्यो लह्यो वंछित काज, ज्ञान विमल गुरु आण पसाये अधिक उदय होय आज ॥ १७॥ ॥६६॥ ॥ "इति श्री ज्ञान पञ्चमी स्तवनम् सम्पूर्णम्” ॥ -AAAAAA For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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