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________________ साहेलडीरे०,जेठ आषाढ वैशाख तो षट्कार्तिक वली लीजीए साहेलडीरे०,शुभ दिन सहगुरु साख तो॥६॥ देहरेदेव जुहारीए साहेलडीरे०, गीतारथ गुरु वंदन तो; पोथी शक्ति पूजीए साहेलडीरे०, प्रभावना मांडी* नांद तो ॥७॥ उभय टंक आवश्यक साहेलडीरे०,देव वंदन त्रण्य वार तो ब्रह्मचर्यने पालीए साहेलडीरे.. आरंभ सचित्त परिहार तोटापंचमी स्तवनस्तुति कहे साहेलडीरे०, पच्चरखे चोथ उपवास तो; त्रिविध चउविध गुरुने मुखें साहेलडीरे०,अथवा पौषध खासतो॥९॥ गीतारथ पासे पछी साहेलडीरे०,मन धरे तास उपगार तो; जावजीव उत्कृष्ट पदे साहेलडीरे०, पांच वरस पंचमास तो ॥१०॥जघन्य पदे एजाणीए साहेलडीरे०, अथवा वली एक वर्ष तो; उजमणे आराधीए साहेलडीरे०, जिम पोहचें मन हरषतो॥१॥3 ढाल-॥३॥ जी ॥ सारद बुध दाइनी ॥ निज शक्तिने सारं-उजमणुं करो वारु, वित्त खरचो| KIमोटे मने-प्रतिमा भरावो चारु; ज्ञान दर्शन चारित्र त्रीकाल-त्रण्ये ज्ञान पूजे, स्थापन पूजीने-गुरु कापुर काउस्सग कीजे ॥ १२ ॥ त्रूटक-पांच एकावन लोगस्स केरो पंच पंच वस्तु धोवे, पाठा प्रत रुमाल लेखण वासकुंपीने जोवे; पाटी पोथी ठवणी कवली पूंजणी नोकरवाली, दोरा चाबखि स्थापना NCC-40% For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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