________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobarth.org.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कोढ रोग ए, किम थयो रे, मुज भाखो भगवंत; सद् गुरुजी धन्य तुमारं ज्ञान ॥ ए आंकणी ॥ | ॥ २६ ॥ गुरु कहे जंबुद्वीपमां रे, भरते श्रीपुर गाम वसुनामें व्यवहारीओ रे, दोय पुत्र अभिराम; सद् गुरुजी; ॥ २७ ॥ वसुसारनें वसुदेवजी रे, दीक्षा लीए गुरु पास; लघु बंधव वसु देवनें रे, पदवी | दीए गुरु तास; सद्गुरुजी ॥ २८ ॥ दोय सहस अणगारनें रे, आचार्य वसुदेव; शास्त्र भणावे खांतरयुं रे, नहीं आलस नीत्य मेव सद्गुगुजी ॥ २९ ॥ एक दिन सूरी संथारिया रे, पूछे पद एक साध; अर्थ कहे गुरु तेहनें रे, वली आव्यो बीजो साथ; सद्गुरुजी; ॥ ३० ॥ इम बहु मुनी पढ़ पुछवा रे, एक आवे एक जाय; आचार्य ने उंघमां रे, थाए अति अंतराय सद्गुरुजी; ॥ ३१ ॥ सूरि तिहां इम चिंतवे रे, कीहां लाग्युं मुज पाप; जो में शास्त्र अभ्यासीयां रे, तो एटलो संताप; सद्| गुरुजी; ॥ ३२ ॥ पद न कहुं हवे केहनें रे, सघलुं मूकं विसार; ज्ञान उपर इम आणीओ रे, त्रिकरण क्रोध अपार; सद्गुरुजी; ॥ ३३ ॥ बार दिवस अण बोलीयां रे, अक्षर न कह्यो एक; अशुभ ध्यानें ते मरीरे, तुज सुत ए अविवेक; सद्गुरुजी; ॥ ३४ ॥
For Pitvale And Personal Use Only