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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इम हो के सुंदरीए तिहां, पाटी पोथी हो के अग्निमां नांखी दीयां ॥ १२ ॥ ते वात सुणीनें हो के जिनदेव इस्युं बोले, फिटरे सुंदरी हो के काम कर्यु किस्युं; मूर्ख राख्यां हो के ए सर्वे पुत्र तुमे, नारी बोली हो के नविजाणुं अमे ॥ १३ ॥ मूर्ख मोटा हो के पुत्र थयां ज्यारें, नदीए कन्या हो के कोइ तेहनें त्यांरे; कंत कहे सुणज्यो हो के ए करणी तुम तणी, वयण न मान्यां हो के ते पहेलां अमतणां ॥ १४ ॥ एम सूणीनें होके सुंदरी क्रोधे चढी, प्रीतम साथे हो के प्रेमदा अतिशें वढी; कंते मारी हो के तिहांथी काल करी, ए तुज बेटी होके थइ गुणमंजरी ॥ १५ ॥ पूर्वभव इणे होके ज्ञान विराधिउं, पुस्तक बाली हो के कर्म जे बांधियुं; उदयें आव्युं हो के देहे रोग थयो, वचने मुंगी हो के एफल तास लो ॥ १६ ॥ ढाल — ॥ त्रीजी ॥ ललनानी देशी ॥ नीज पूर्व भव सांभली, गुणमंजरी पण त्यांहि ललना; जाति समरण पामीउं, गुरुने कहे उत्छांह ललना; भविका ज्ञान अभ्यासियें ॥ ए आंकणी ॥ १७ ॥ ज्ञान भलुं गुरुजी तणुं, गुणमंजरी कहे एम ललना; ॥ शेठ पुछे गुरुने तिहां, रोग जाए कहो केम For Private And Personal Use Only %%%%%%%%
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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