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ShiMahayeJainrachanaKendra
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लायक मांहि पुरंदरो; श्रीलाल कुशल विबुध सुखकर वीर कुशल पंडित् वरो, सौभाग्य कुशल सुगुरु सेवक केशर कुशल जय करो ॥७५॥
" इति श्री सौभाग्य पञ्चमी स्तवनम् सम्पूर्णम्"
" अथ श्री ज्ञान पञ्चमी स्तवनम् " ढाल–पहेली ॥१॥ देशी रसियानी ॥ प्रणमी पास जिनेश्वर प्रेमश्यु, आणी आणंद अंग चतुर नर; पंचमी तप महिमा महील अति घणो, कहेशुं सुणज्योरे रंग ॥ चतुरनर; भाव भलें पंचमी तप कीजीए गए आंकणी॥१॥ इम उपदिशे होश्रीनेमिसरूं, पंचमी करज्यो रे तेम चतुरनर गुणमंजरी वरदत्त तेणी परे, आराधे फल जेम, चतु० भावभलें ॥२॥ जंबुद्वीपे रे भरत मनोहरु, नयर पद्मपुर खास चतु० राजा अजित सेनाभिध तिहां कणे,राणि यशोमति तास,चतु भावभलें ॥३॥वरदत्त नामे हो कुंअर तेहनो, कोढे व्यापी रे देह,चतु;॥ज्ञान विराधन कर्म जे बांधीउं,उदये आव्युरेतेह, चतु० भावभलें ॥४॥ तिण नयरे सिंहदास गृही वसे,कपूरतिलका तस नारि चतु०॥ तसबेटी गुणमंजरी रोगणी, वचनें मुंगी
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