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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobathrtm.org Acham Ka B andit शांतिना-वासकुंपी वली आपो, झरमर पांच मंगावो जी; गुरु वांदी पुस्तकनें पूजी, सामी सामिणो नोतरावो पंच क० थना. जी; गुरुने तेडी बेकर जोडी, आदरशुं वहोरावो जी; पारणुं कीजे लाहो लीजे, पांचिम तप उजमावो स्तवन जी ॥ ७१ ॥ नेमि जिणेश्चर अति अलवेशर, केशर वर सम कायाजी; ए उपदेश सुणीने समज्या, ॥६१॥ ज्ञान लोचन देखाया जी; वरदत्त गणधर आगे कहीओ, लहीओ भवीजन प्राणी जी; सौभाग्य पंचमी तप आराहो, निसुणी जिनवर वाणी जी ॥७२ ॥ देह निरोग सोभागी थाओ, पाओ रंग | रसाला जी; मूर्ख पणु दुरे छांडो, मांडो ज्ञान विशाला जी; सौभाग्य पंचमी जे नर करशे, ते वरस्य मंगल मालाजी; गजरथ घोडा सुंदिर मंदिर, मणिमय झाक झमाला जी ॥७३॥ संवत् सत्तर अठावन्ना मांहि, सिद्ध पुर रही चोमासु जी; कार्तिकशुदी पांचिम दीने गायो, सफल फली मुज आशजी; श्री जिनशासन मांहि राजे, श्री विजयप्रभ सुरिंदाजी, श्री विजयरत्न सूरीश्वर राजे, प्रणमें परमानंदाजी ॥ ७ ॥ । कलश-इम नेमि जिनवर सयल सुखकर उपदिशे भवि हितकरो, तप गच्छ नायक सुखदायक CARCIAC- वन्दर For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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