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________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis शां. ११ www.kobarth.org. Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir जंबूद्वीप मांहि वली, वीजय रमणी हे नगरी चोंसाल तो; अमरसेन अमरावती, पुण्ये प्रगट्यो आव्यो ए बाल तो; सौ० ॥ ६५ ॥ गुणमंजरी जीव उपन्यो, राजानें हे हुओ ओच्छव रंगतो; राज करे नीज तातनुं, प्रेमे परणे हे कन्या सुख संग तो; सौ० ॥ ६६ ॥ एक दीन मनमां चिंतवे, हुं तो साधु हो निज आतम काज तो; प्यार सहस बेटा थयां, पाट आपे हो निज सुत शिरताज तो; सौ० ॥ ६७ ॥ सिंह तणी परे नीकलें, लाख पूरव हो संयम शिरताज तो; तप तपे अती आकरा, केवल पामी हो लहे शिवराज तो; सो० ॥ ६८ ॥ ढाल – ॥५॥ मी ॥ देशी बजानानी राग धन्या श्री ॥ तप उजमणुं इणीपरे सुणीए, वित सारुं धन खरचो जी; पंचमी दिन पामी कीजे, ज्ञानादिकनें आचरोजी; पांच प्रत सीद्धांतनी सारी, पाठां पांच ऋमाल जी; खडियो लेखण पाटी पोथी, ठवणी कवली द्यो लाल जी ॥ ६९ ॥ स्नात्र महोत्सव विधीशुं कीजे, राती जगे गीत गायो जी; चैत्या दिकनी पूजा करता, जीनवरनां गुण गाओजी; गुणमंजरी वरदत्त तणी परे, कीजे त्रिकरण शुद्ध जी; एवीध करतां थोडे काले, लहीए सघली सीद्ध जी ॥७०॥ For Pitvate And Personal Use Only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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