SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SM Mahavam A kende Acharya Sh Kailasager Gamandi शांतिना- थना. IES ए आंकणी ॥त्रण काल देव वांदीएं, कीजें दीजे हो गुरुने बहु मान तो; पडिक्कमणां दोय वारना, पंच क० जिम व्यापें हो उत्तम गुण ज्ञान तो; सौ०॥ ५७ ॥ नयरी पुंडरी गणी सोहती, विराजे हो अमर स्तवन. सेन भूपाल तो; तस घरणी शीलें सती, गुणवती कुखे हो अवतरीओ बालतो; सौ० ॥ ५८ ॥ सजन । संतोषी सांमटा, नाम स्थापें हो सूरसेन अभिराम तो; चंदकला जिम वाधती, तीम साधे हो वाघे |निज नाम तो; सौ०॥ ५९ ॥ यौवन वय जाणी पीता, सो कन्या हे परणावी सार तो; राज देइ निज पुत्रनें, अमरसेन पोहतो हे परम लोक मोझारतो; सौ०॥६०॥ सीमंधर आव्यां सांभली, वांदवाने हे आवे तीहां भूपतो; ज्ञान आराधन देशना, देखाडे हे वरदत्त खरुप तो; सौ०॥ ६१॥lk|| सूरसेन हवे वीनवें, प्रभु प्रकाशो हे ते कुण वरदत्त तो; सकल वात मांडी कही, तप मांड्यो हे कीजें रंग रत्ततो; सौ०॥ ६२ ॥ जीनवर वांदी आवीओ, संवेगे हे मुके घर भारतो; सिंहतणी परें। ॥६ ॥ आदरी, जिणें लहीएं हे भवजल नो पारतो; सौ०॥ ६३ ॥ पंच महाव्रत आदरो, सहस वरस हैं पामे केवल ज्ञान तो;॥ अविचल सुख एणे लह्यां, निसुणि हे आराहो ज्ञान तो; सौ०॥१४॥ SEX B For Patie And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy