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________________ ShiMahayeJainrachanaKendra www.kobathrtm.org Achan Kailas Gyamandi जाती स्मरण बाल ॥रा धन्य धन्य गुरु ज्ञानि मिल्यां,रोग थयां आल माल॥रा० मुनीवर ॥४॥विधि साथे पंचमि करे, राजादिक परिवार ॥रा०;रोग गयां सवि तेहनां,जिम जाएं तडकें ठार ॥रा० मुनीवर ॥ ४९ ॥ स्वयंवर मंडप मांडीओ, परणी एक हजार ॥रा०॥ हरख्यो वरदत्त इम कहें, जैन धर्म जगसार ॥रा० मुनीवर ॥५०॥राज्य स्थापि निज पुत्रने, साधे शिवपुर साथ ॥रा०॥ अजितसेन चारित्र लीएं, साचां श्री गुरु हाथ ॥ रा०॥ ५१ ॥ सुख विलसें संसारना, वर्तावे निज आण ॥ रा; ॥ पुत्र । जन्म एहवें थयो, उग्यो अभिनव भाण ॥ रा० मुनीवर ॥ ५२ ॥ CI दुहा-गुणमंजरी सुंदर भएं, परणी सा जिनचंद; चारित्र साधी नीर्मलं, पामे वैजयंत सुरिंद M ५३ ॥ वरदत्त मनमां चीतवी, आपे सुतने राज; हवे हूं संजम आदरं, साधुं आतम काज॥५४॥ अशुभ ध्यान दूरे करी, धरतो जिनवर ध्यान; काल धर्म पामी उपन्यो, पुष्कलावती विजय प्रधान॥५५॥ ढाल-॥४॥ सहियां हे पिउ चालीओ ॥ ए देशी ॥ सौभाग्य पञ्चमी आदरो, जिमपामो हैं। सुख सघलां वडवीर तो; चोथी करी शुदी पंचमी, व्रतधरवू हे भुइं सुq धीरतो॥५६॥ सौ०॥ SHRESS CA%A5%25ACCASर For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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